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Monday, October 8, 2018


                   हम नवरात्र  क्यों मनाते है  ?             दिनेश मांकड़       
           या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता  | नमस्तयै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमो ||
            जगत जननी आद्य शक्ति का नवरात्र पर्व हम सब बड़े धूम धाम से मनाते  है |
          वैसे तो हम जानते है की गुजरात में ,अब तो भारत और सारे विश्व में नवरात्र का त्योंहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है | सामान्य तौर पर हम पारम्परिक वेश परिधान करके आनंद ओर उत्साह से गरवा घूमते है -नाचते है -गाते है | अच्छी बात है.| सारे संसार में हमारा भारत ही ऐसा देश है जो विविध संस्कृति और त्योहारों से पूरा मानव जीवन उल्लास पूर्ण बनता है |
       आखिर हम नवरात्र क्यों मानते है ? बहोत से लोगोने  -खास करके युवा पीढ़ी ने कभी भी सोचा तक नहीं की यह नवरात्र क्यों ?प्राचीन भारत का बड़ा उज्जवल इतिहास है |  पुराण कथा के अनुसार  महिष  नाम का  असुर देव एवं मानव जात को त्रस्त कर रहा था |पुरे तीनो लोक में संहार कर रहा था | उसे निपटने के प्रभावी शक्ति की आवश्यता थी | देवो तपस्या की ,और एक महा प्रभावी शक्ति प्रगट हुई और बड़े आयुधो से नौ दिनों तक इस महिसासुर से युद्ध किया | उसको हराया | उस जगदम्बा के प्रगटीकरण के उत्सव को हम "नवरात्र "के रूप में मनाते है |
      यह तो पौराणिक बात हुई | हमारे ऋषिओ ने  सभी त्योंहारों के पीछे के सच्चे रहस्य को पुरे वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक तौर से समजाये है |   हमारे भीतर कितने असुर -राक्षस बैठे हुए है ,जिसका हमें पता ही नहीं | और पता है भी तो भी हम भगा नहीं सकते है |  हमारे अंदर ऐसी आतंरिक ताकत नहीं है  जो ऐसे असुरो को भगा सके |
       *आलस-प्रमाद  कितने भरे हुए है हमारे अंदर| कितने उम्दा और अच्छे विचार-सोच हमारे अंदर आते है|कुछः कर दिखने को मन करता है | जीवन में कुछ पाने को जी बहोत चाहता है |बहोत कुछ करना है मगर आलस प्रमाद हमें रोक देता है|  
      *इर्षा  नामक शत्रु तो हमें बहोत पीछे ले जाता है |किसी से स्पर्धा अच्छी चीज है मगर इर्षा से हम कुछ पते तो नहीं मगर जो है वोही खो बैठते है |
     *लक्ष्य के प्रति दुलक्ष्य - आज मानव जीवन सिर्फ 'खाओ ,पीओ और मौज करो 'वाला ही बनाता जा रहा है | हमारे अंदर के गुण,अच्छी बाते,अपने और समाज के लिए कुछ ज्यादा करने की सोच बहोत काम होती जा रही है |
       *स्वार्थ और भावना शून्यता -दिन-ब-दिन आदमी के अंदर स्वार्थ परायणता और भाव शून्यता बढ़ता जा रहा है| यह बड़ी चिंता और दुःख की घटना है | इससे परिवार -समाज टूटता जा रहा है | परस्पर की संवेदना कम होती जा रही है |
          हकीकत से तो हम खुद ईश्वर के अंश रूप ही है ,मगर  हमारे अंदर बैठे हुए ऐसे  भयानक असुर हमारी जिनकी रह में बाधा डालते है |हमें आगे नहीं बढ़ने नहीं देते,|हमें अच्छे मनुष्य बनने नहीं देते| हम  सब  मानवी होने पर भी "महिष" (भैस -पाड़ा ) जैसा  जीवन व्यतीत करते है |
     हमारे अंदर ही बैठी हुई इसी "महिषासुर  वृति " को -महिषासुर को ध्वस्त करने लिए हम 'नवरात्र 'मनाते है  |  नौ दिन हम माँ जगदम्बा की आराधना करके उससे ऐसी शक्ति की  प्रार्थना करते है की हमारे अंदर बैठे हुए आसुरी तत्व का नाश हो |
        जगदम्बा के नवदुर्गा रूपका हमें ध्यान -आराधना करके शक्ति पानी है |
        प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
       पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
        नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।[1]
         नवरात्र में  इस शैलपुत्री आदि देविओका  ध्यान आराधना करने से इसके ही गुण  जैसे कि तप ,शांति,कल्याणभावना ,सूर्य जैसी प्रबलता ,एकाग्रता और  असंभव को संभव करने वाली सिद्धियां प्राप्त होगी | हमारे शरीर के रहे हुए मणिपुर चक्र ,आज्ञा चक्र आदि सभी चक्रों को स्थिरता और प्रबलता प्रदान  होती है |
     हम  पारम्परिक परिवेश पहन कर संस्कृति को याद रखे आनंदोल्लास से नाचे-घूमे यह तो बढ़िया बात है ,साथ साथ यह मत भूले की यह पर्व हमारे में मानवीय गुण का विकास हो |
         नवरात्र में हम "गरबा" में दिप जलाते है | गरबा शब्द  "गर्भ दिप " से आया है | हमारा शरीर एक मंदिर है | इसके गर्भ गृह में जो दिप है वह हमारा चैतन्य है |-दीपक है | हमें उस दीपक को  अच्छी तरह प्रज्वलित रखना है |  तो ही हमारा शरीर मंदिर सच्चे अर्थमे  मंदिर बनेगा और उसमे  माँ जगदम्बा "शक्ति " बनकर  आएगी | हमारी अंदर  पैर फैलाकर पड़ी हुई  ,आलस,प्रमाद ,इर्षा,स्वार्थ ,भावशून्यता जैसी  आसुरी शक्ति ख़त्म होगी |  और  माँ आद्यशक्ति को हम कहेंगे की  "आपकी दी हुई शक्ति से अब हम इतने प्रबल है की हम सब  में -मानव मन में कभी भी  ऐसी आसुरी शक्ति का प्रवेश हो न पाए|  और  पुरे विष्वमे  मानव अच्छा मानव बनकर रहे |                                                                   दिनेश मांकड़
                                                                                         ( 9427960979 )

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