हम नवरात्र क्यों मनाते है ? दिनेश मांकड़
या देवी सर्व
भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता | नमस्तयै
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमो ||
जगत जननी आद्य
शक्ति का नवरात्र पर्व हम सब बड़े धूम धाम से मनाते है |
वैसे तो हम
जानते है की गुजरात में ,अब तो भारत और सारे विश्व में नवरात्र
का त्योंहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है | सामान्य तौर पर
हम पारम्परिक वेश परिधान करके आनंद ओर उत्साह से गरवा घूमते है -नाचते है -गाते है
| अच्छी बात है.| सारे संसार में हमारा भारत ही ऐसा देश
है जो विविध संस्कृति और त्योहारों से पूरा मानव जीवन उल्लास पूर्ण बनता है
|
आखिर हम नवरात्र क्यों मानते है ?
बहोत
से लोगोने -खास करके युवा पीढ़ी ने कभी भी
सोचा तक नहीं की यह नवरात्र क्यों ?प्राचीन भारत का बड़ा उज्जवल इतिहास है | पुराण कथा के अनुसार महिष
नाम का असुर देव एवं मानव जात को
त्रस्त कर रहा था |पुरे तीनो लोक में संहार कर रहा था | उसे
निपटने के प्रभावी शक्ति की आवश्यता थी | देवो तपस्या की ,और
एक महा प्रभावी शक्ति प्रगट हुई और बड़े आयुधो से नौ दिनों तक इस महिसासुर से युद्ध
किया | उसको हराया | उस जगदम्बा के
प्रगटीकरण के उत्सव को हम "नवरात्र "के रूप में मनाते है |
यह तो पौराणिक बात हुई | हमारे
ऋषिओ ने सभी त्योंहारों के पीछे के सच्चे
रहस्य को पुरे वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक तौर से समजाये है | हमारे भीतर कितने असुर -राक्षस बैठे
हुए है ,जिसका हमें पता ही नहीं | और पता है भी तो भी हम भगा नहीं सकते
है | हमारे अंदर ऐसी
आतंरिक ताकत नहीं है जो ऐसे असुरो को भगा
सके |
*आलस-प्रमाद कितने भरे हुए है हमारे अंदर| कितने
उम्दा और अच्छे विचार-सोच हमारे अंदर आते है|कुछः कर दिखने
को मन करता है | जीवन में कुछ पाने को जी बहोत चाहता है |बहोत
कुछ करना है मगर आलस प्रमाद हमें रोक देता है|
*इर्षा नामक शत्रु तो हमें बहोत
पीछे ले जाता है |किसी से स्पर्धा अच्छी चीज है मगर इर्षा से हम
कुछ पते तो नहीं मगर जो है वोही खो बैठते है |
*लक्ष्य
के प्रति दुलक्ष्य - आज मानव जीवन सिर्फ 'खाओ ,पीओ
और मौज करो 'वाला ही बनाता जा रहा है | हमारे
अंदर के गुण,अच्छी बाते,अपने और समाज के
लिए कुछ ज्यादा करने की सोच बहोत काम होती जा रही है |
*स्वार्थ
और भावना शून्यता
-दिन-ब-दिन आदमी के अंदर स्वार्थ परायणता और भाव शून्यता बढ़ता जा रहा है| यह
बड़ी चिंता और दुःख की घटना है | इससे परिवार -समाज टूटता जा रहा है |
परस्पर
की संवेदना कम होती जा रही है |
हकीकत से तो हम
खुद ईश्वर के अंश रूप ही है ,मगर
हमारे अंदर बैठे हुए ऐसे भयानक
असुर हमारी जिनकी रह में बाधा डालते है |हमें आगे नहीं
बढ़ने नहीं देते,|हमें अच्छे मनुष्य बनने नहीं देते| हम सब
मानवी होने पर भी "महिष" (भैस -पाड़ा ) जैसा जीवन व्यतीत करते है |
हमारे अंदर ही
बैठी हुई इसी "महिषासुर वृति "
को -महिषासुर को ध्वस्त करने लिए हम 'नवरात्र 'मनाते
है | नौ दिन हम माँ जगदम्बा की आराधना करके
उससे ऐसी शक्ति की प्रार्थना करते है की
हमारे अंदर बैठे हुए आसुरी तत्व का नाश हो |
जगदम्बा के
नवदुर्गा रूपका हमें ध्यान -आराधना करके शक्ति पानी है |
प्रथमं
शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं
चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।
पंचमं
स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं
कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।
नवमं
सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:। उक्तान्येतानि
नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।[1]
नवरात्र में इस शैलपुत्री आदि देविओका ध्यान आराधना करने से इसके ही गुण जैसे कि तप ,शांति,कल्याणभावना
,सूर्य जैसी प्रबलता ,एकाग्रता और असंभव को संभव करने वाली सिद्धियां प्राप्त
होगी | हमारे शरीर के रहे हुए मणिपुर चक्र ,आज्ञा
चक्र आदि सभी चक्रों को स्थिरता और प्रबलता प्रदान होती है |
हम
पारम्परिक परिवेश पहन कर संस्कृति को याद रखे आनंदोल्लास से नाचे-घूमे यह
तो बढ़िया बात है ,साथ साथ यह मत भूले की यह पर्व हमारे में
मानवीय गुण का विकास हो |
नवरात्र में हम "गरबा" में
दिप जलाते है | गरबा शब्द "गर्भ दिप " से आया है | हमारा
शरीर एक मंदिर है | इसके गर्भ गृह में जो दिप है वह हमारा
चैतन्य है |-दीपक है | हमें उस दीपक
को अच्छी तरह प्रज्वलित रखना है | तो ही हमारा शरीर मंदिर सच्चे
अर्थमे मंदिर बनेगा और उसमे माँ जगदम्बा "शक्ति " बनकर आएगी | हमारी अंदर पैर फैलाकर पड़ी हुई ,आलस,प्रमाद
,इर्षा,स्वार्थ ,भावशून्यता
जैसी आसुरी शक्ति ख़त्म होगी | और
माँ आद्यशक्ति को हम कहेंगे की
"आपकी दी हुई शक्ति से अब हम इतने प्रबल है की हम सब में -मानव मन में कभी भी ऐसी आसुरी शक्ति का प्रवेश हो न पाए| और
पुरे विष्वमे मानव अच्छा मानव बनकर
रहे | दिनेश मांकड़
( 9427960979 )
KHUBAJ interesting..
ReplyDeleteWow great wording
ReplyDeleteNice Article, Worth Reading
ReplyDeleteGood...true
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