"मैं पूर्ण हूँ|
पूर्ण ही हु | " दिनेश मांकड़ {९४२७९६०९७९ }
टीनू और मीनू शाला में अपनी जगह बैठे
थे | शिक्षक अभी तक वर्ग में आये नन्ही थे | टीनू,मीनू
को कह रहा था ," मैं तो कुछ नहीं हूँ | न मैं अभ्यास में आगे ,न
मुझे कोई कला में रूचि | खेल के भी मुझे डाँटते है क्योंकी मैं
कोई खेल में हिस्सा नहीं लेता | घरमे मम्मी पापा भी दूसरोका उदाहरण
देकर ,कहते है की तू करके दिखाओ,|
" टीनू की बात सुनकर मीनू मुस्कराया और बोला," देख
टीनू ,सब लोग जो भी बोले -शायद सच्चे हो या न हो ,लेकिन तेरे में
तो बहोत कुछ है | देख ,अच्छा तैर सकता है , तेरी
दादी को हररोज मंदिर ले जाते हो, तेरे पिताजी जब दुकान पर नहीं होते तो
तुम सभी ग्राहक को संभाल लेते हो | एक बात
समजले की दूसरे लोग हमारी कमी बताये तो
सुन जरूर लेना ,मगर अपना मूल्य खुद ही निश्चित करना |
"
ॐ पूर्णमदः
पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ पूर्णमदः
पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते पूर्णश्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते |
सब से पहली बात-हम मनुष्य है | कहा
जाता है की पृथ्वी पर चौरासी लाख प्रकार
के जीव है | दो चार पल जीने वाले चींटे भी है और १५० साल जीने वाले कछुए
भी है |
आँखों से नहीं देखे जाने जंतु भी है ,कदावर
हाथी,जिराफ भी है | काला कौआ और सप्तरंगी मयूर भी है |
सब
से भीरु खरगोश तो सबसे हिंसक शेर -चित्ते
भी तो यही पर है | लेकिन ईश्वर ने सिर्फ मनुष्य को सब से अधिक
एक चीज दी है | बुद्धि और सोच
की शक्ति | गड्ढे से घोडा नहीं बन सकता ,कौआ
कभी हंस नहीं बन पाता आदमी "नर से नारायण " जरूर बन सकता है | हम
खुद अपने विकास में बारे में हो सके इतना सोच सकते है ,कुछ करने की
कोशिश भी कर सकते है | और बन भी सकते है |आद्य गुरु
शंकाराचार्यजी ने तो 'आत्म षटक' में मनुष्य को ही
शिव रूप बताया है | 'चिदानंद
रूप शिवोहम | '
गुरु की आवश्यकता क्यों और कब ?
सोचने का सवाल है |
आज कल गुरु बनाने वाले या तो आगे से
चलती परम्परा को बिना सोचे समजे अपना लेता है | या तो अपने आप पर अंदर पड़े अल्प
विश्वास के कारण किसी व्यक्ति को गुरु बना
लेता है | तीसरी बात -या तो किसी के प्रभाव ,चमत्कार या तो
कोई लालसा की वजह से गुरु बना लेते है |
दुर्भाग्य की बात यह है की इन तीनो बातो में मनुष्य बिना सोचे -समजे
किसी को भी गुरु बना लेते है |
हकीकत में इन तीनो बाते आज के युग में
कितनी उचित है ,यह बार बार सोचना पड़ता है | क्यूंकि
प्राचीन समय में जब परम्परा शुरू हुई तब जो
आद्य गुरु थे ,उनकी
धर्म निष्ठा,निस्वार्थ निस्वार्थ मानव परायणता ,लोकहित -सब कुछ था | नम्रता के साथ पूछना पड़ेगा की ,आज
इस परम्परा पर गद्दी पर आने वाले की योग्यता कितनी है ? हकीकत यह होती
है की व्यक्ति पूजा बनकर गुरु गरिमा का
हनन इसमें होता है | किसी
चमत्कार या लालच से बनने वाले तो कितनी
गलती करते ,वह तो समय ही बताता है| आज विज्ञानं के
युग में किसी चमत्कार का तुरंत स्वीकार बिलकुल गलत बात है | हमें धनवान
बनाने वाले खुद क्यों दुसरो से भिक्षा मांगते है ? सिर्फ
अपने स्वार्थ और नाम के लिए किसी को मुर्ख बनाना ईश्वर की नजरमे तो सब से बड़ा पाप है| और उसका आखरी अंजाम क्या होता है वो सब
जानते भी फिर भी अपनी जुठ्ठी आस्था छोड़ते नहीं है ,वह तो इससे भी
खतरनाक बात है |अल्प मति से -अपने खुद पर के कम विश्वास होने
पर किसी भी व्यक्ति को गुरु बना लेना ,यह तो खुद का
अपमान है |
लघुता
ग्रंथि मानव मात्र का ,सब
से बड़ा दुश्मन है |
स्वामी
विवेकानद तो कहा ही है ,हर व्यक्ति के अंदर अनंत शक्ति भरी हुई है |
अगर
इच्छाशक्ति की प्रबलता और पुरे दिल से -लगाव से कोशिश करना | यह
होता तो कोई भी आदमी कुछ भी कर सकता है | हमारे देश के भव्य इतिहास के पन्ने इसी से भरे हुए है |
कोई
भी क्षेत्र हो छोटे में बड़े -कठिनाई में
से निकले हजारो लोग मिलेंगे ,जिसने
सब कुछ पा लिया है |
अपने आप को कम समझना ,यह
सब से बड़ी गलती है | जिस कार्य से हम जुड़े है ,अगर
उसी कार्य में पूरा दिल लगाले तो कार्य अवश्य सब से प्रज्वलित
हो क्र दिखेगा ही |बहुधा लोग गुरु इसलिए बनाते है की खुद
को छोटा -लघु समझता है | सच्ची बात तो यह है हम ही अपने आपके
गुरु है | जो लघु नहीं है वह गुरु|
फिर आदर से कहना
पड़ता है की वतमान में ,किसी भी
व्यक्ति को गुरु मानेंगे तो उस व्यक्ति में कुछ न कुछ कमिया होगी ही सही |क्या हम अपने
खुद के गुरु नहीं बन सकते ? क्या
हम अपनी छोटी छोटी बुराइयों को थोड़े से संकल्प से निकाल नहीं सकते ? क्या हम लघु में से अपने आप "गुरु " नहीं बन सकते ?
बहु प्रचलित
श्लोक- ' गुरुर्ब्रह्मा .....' के सच्चे भावार्थ को जरा समजे | गुरु ही ब्रह्मा ,विष्णु
और महेश है . ब्रह्मा सर्जक है,विष्णु पोषक और शिवजी संहारक है | अपने अंदर अच्छी और जीवन विकास की
आदतों का निर्माण- सर्जन खुद ही करना ,यह
ब्रह्मा का कार्य है | उसको
हो सके इतनी अच्छी तरह पोषित करना -उजागर
करना ,यह विष्णुजी उपस्थिति है | और आलस ,अप्रामाणिकता जैसी अंदर बैठी अनेक बुराइयों को भगाना-उसका
विनाश करना यह महेश -शिवजी का ही तो कार्य
है | अपने आपमें
ब्रह्मा ,विष्णु महेश के गुण हो सके उतना उतारकर अपने ही
गुरु खुद बने | गुरु पूर्णिमा की शुभकामना |
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