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Tuesday, July 16, 2019


                "मैं पूर्ण हूँ|    पूर्ण  ही हु | "                   दिनेश मांकड़  {९४२७९६०९७९ }
        टीनू और मीनू शाला में अपनी जगह बैठे थे | शिक्षक अभी तक वर्ग में आये नन्ही थे | टीनू,मीनू को कह रहा था ," मैं तो कुछ नहीं  हूँ | न मैं अभ्यास में आगे ,न मुझे कोई कला में रूचि | खेल के भी मुझे डाँटते है क्योंकी मैं कोई खेल में हिस्सा नहीं लेता | घरमे मम्मी पापा भी दूसरोका उदाहरण देकर ,कहते है की  तू करके दिखाओ,| " टीनू की बात सुनकर मीनू मुस्कराया और बोला," देख टीनू ,सब लोग जो भी बोले -शायद सच्चे हो या न हो ,लेकिन तेरे में तो बहोत कुछ है | देख ,अच्छा तैर सकता है , तेरी दादी को हररोज मंदिर ले जाते हो, तेरे पिताजी जब दुकान पर नहीं होते तो तुम सभी ग्राहक को संभाल लेते हो | एक बात समजले  की दूसरे लोग हमारी कमी बताये तो सुन जरूर लेना ,मगर अपना मूल्य खुद ही निश्चित करना | "
             ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते। पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
            ॐ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्पुर्णमुदच्यते पूर्णश्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते | 
        सब से पहली बात-हम मनुष्य है | कहा जाता है की पृथ्वी पर  चौरासी लाख प्रकार के जीव है | दो चार पल जीने वाले चींटे भी है और १५० साल जीने वाले कछुए भी है |
       आँखों से नहीं देखे जाने जंतु भी है ,कदावर हाथी,जिराफ भी है | काला कौआ और सप्तरंगी मयूर भी है | सब से भीरु खरगोश तो सबसे हिंसक  शेर -चित्ते भी तो यही पर है | लेकिन ईश्वर ने सिर्फ मनुष्य को सब से अधिक एक  चीज दी है | बुद्धि और सोच की शक्ति | गड्ढे से घोडा नहीं बन सकता ,कौआ कभी हंस नहीं बन पाता आदमी  "नर  से नारायण " जरूर बन सकता है | हम खुद अपने विकास में बारे में हो सके इतना सोच सकते है ,कुछ करने की कोशिश भी कर सकते है | और बन भी सकते है |आद्य गुरु शंकाराचार्यजी ने तो 'आत्म षटक' में  मनुष्य को ही  शिव रूप बताया है |  'चिदानंद रूप शिवोहम | '
     गुरु की आवश्यकता क्यों और कब ? सोचने का सवाल है |
         आज कल गुरु बनाने वाले या तो आगे से चलती परम्परा को बिना सोचे समजे अपना लेता है |  या तो अपने आप पर अंदर पड़े अल्प विश्वास  के कारण किसी व्यक्ति को गुरु बना लेता है | तीसरी बात -या तो किसी के प्रभाव ,चमत्कार या तो कोई लालसा की वजह से गुरु बना लेते है |  दुर्भाग्य की बात यह है की इन तीनो बातो में मनुष्य बिना सोचे -समजे किसी को भी गुरु बना लेते है |
        हकीकत में इन तीनो बाते आज के युग में कितनी उचित है ,यह बार बार सोचना पड़ता है | क्यूंकि प्राचीन समय में जब परम्परा शुरू हुई तब जो  आद्य गुरु थे ,उनकी  धर्म निष्ठा,निस्वार्थ निस्वार्थ मानव परायणता ,लोकहित  -सब कुछ था |  नम्रता के साथ पूछना पड़ेगा की ,आज इस परम्परा पर गद्दी पर आने वाले की योग्यता कितनी है ? हकीकत यह होती है की  व्यक्ति पूजा बनकर गुरु गरिमा का हनन इसमें होता है |  किसी चमत्कार या लालच से बनने वाले तो  कितनी गलती करते ,वह तो समय ही बताता है| आज विज्ञानं के युग में किसी चमत्कार का तुरंत स्वीकार बिलकुल गलत बात है | हमें धनवान बनाने वाले खुद क्यों दुसरो से भिक्षा मांगते है ?  सिर्फ  अपने स्वार्थ और नाम के लिए किसी को मुर्ख बनाना  ईश्वर की नजरमे तो सब से बड़ा पाप है|  और उसका आखरी अंजाम क्या होता है वो सब जानते भी फिर भी अपनी जुठ्ठी आस्था छोड़ते नहीं है ,वह तो इससे भी खतरनाक बात है |अल्प मति से -अपने खुद पर के कम विश्वास होने पर किसी भी व्यक्ति  को  गुरु बना लेना ,यह तो खुद का अपमान है |
         लघुता ग्रंथि  मानव मात्र का ,सब से बड़ा  दुश्मन है | स्वामी विवेकानद तो कहा ही है ,हर व्यक्ति के अंदर अनंत शक्ति भरी हुई है | अगर इच्छाशक्ति की प्रबलता और पुरे दिल से -लगाव से कोशिश करना | यह होता तो कोई भी आदमी कुछ भी कर सकता है | हमारे देश के  भव्य इतिहास के पन्ने इसी से भरे हुए है | कोई भी क्षेत्र हो  छोटे में बड़े -कठिनाई में से निकले  हजारो लोग मिलेंगे ,जिसने सब कुछ पा लिया है |
       अपने आप को कम समझना ,यह सब से बड़ी गलती है | जिस कार्य से हम जुड़े है ,अगर उसी कार्य में पूरा दिल लगाले तो कार्य अवश्य सब से  प्रज्वलित  हो क्र दिखेगा ही |बहुधा लोग गुरु इसलिए बनाते है की खुद को छोटा -लघु  समझता है |  सच्ची बात तो यह है हम ही अपने आपके गुरु है | जो लघु नहीं है वह गुरु|
   फिर आदर से कहना पड़ता है की वतमान में ,किसी भी  व्यक्ति को गुरु मानेंगे तो उस व्यक्ति में कुछ न कुछ  कमिया होगी ही सही |क्या हम अपने खुद के गुरु नहीं बन सकते ?  क्या हम अपनी छोटी छोटी बुराइयों को थोड़े से संकल्प से निकाल नहीं सकते ?  क्या हम  लघु में से अपने आप "गुरु "  नहीं बन सकते ? 
      बहु प्रचलित श्लोक- ' गुरुर्ब्रह्मा .....' के  सच्चे भावार्थ को जरा समजे |  गुरु ही ब्रह्मा ,विष्णु और महेश है . ब्रह्मा सर्जक है,विष्णु पोषक और शिवजी संहारक है |  अपने अंदर अच्छी और जीवन विकास की आदतों का निर्माण- सर्जन  खुद ही करना ,यह ब्रह्मा का कार्य है |  उसको हो सके इतनी  अच्छी तरह पोषित करना -उजागर करना ,यह विष्णुजी उपस्थिति है | और  आलस ,अप्रामाणिकता  जैसी अंदर बैठी अनेक बुराइयों को भगाना-उसका विनाश करना यह  महेश -शिवजी का ही तो कार्य है | अपने आपमें  ब्रह्मा ,विष्णु महेश के गुण हो सके उतना उतारकर अपने ही गुरु खुद बने | गुरु पूर्णिमा की शुभकामना  |  

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