तारीख पे तारीख
...........दिनेश मांकड़
छबीस सल्ल के
अनुस्नातक सुनील पर मुकदमा दर्ज हूजा | उसने कुछ गुन्हा नहीं किया ,फिर
भी ., पुलिस हिरासत और
कैद | पास में पैस
नहीं थे इसलिए जामिन नहीं मिला| अदालत में मुकदमा सात साल चला और वह निर्दोष
जाहिर हुआ | उसने माननीय न्यायमूर्ति को सवाल किया "
मेरे जेल में बीते निरर्थक सात साल कहा से लाउ ?
भारतीय
न्यायतंत्र उत्तम है |संविधान और दंड संहिता भी अधिक उत्तम है | फिर भी कुछ न कुछ
वजह स विलम्ब में न्याय मिलता है | और कई निर्दोष लोग सालों तक शारीरिक
एवं मानसिक यातना भुगतते है|
अपने जीवन में
हम सभी बातों में तुरंत ही परिणाम -फल
चाहते है | रसोईघर में
अच्छी रसोई बनी ,जल्दी ही मन खाने को जी चाहता है | बच्चो
की पढाई के बाद उसके परिणाम की उत्सुकता हमें कितनी होती है? न्याय तंत्र में भी जो व्यक्ति
निर्दोष होती है ,वह तो तुरंत ही
फैसला चाहती है | मगर जो
दोषित है उसको कोई चिंता नहीं ,इसलिए
वह बार बार किसी न किसी बाधा डाल कर विलम्ब करने की कोशिश करता है ,ताकि जितना हो
सके उतना मुकदमा उलझाया जाय और न्याय में विलम्ब हो| हमारे देश में सभी को पूरी तरह तक दी
जाती है | अपना
हो सके इतना बचाव करे | ऐसी आदर्श व्यवस्था होनी ही चाहिए | मगर इसका दुरुपयोग न्यायतंत्र की गरिमा
को ठेस पहुंचता है | William E.
Gladston कहते है “Justice
delayed is justice denied “ विलम्ब
से आम लोगोमे न्याय तंत्र के प्रति आदर कम होता है|
पहली
बात मुद्दत की | अदालत में
प्रक्रिया सुचारु चले तो फैसला भी जल्दी आ सकता है | ज्यादातर ( सभी नहीं ) मुकदमे में पक्षकार बार बार किसी न किसी कारण, नई मुद्दत मांगता है ,कभी कभी बुरे इरादे से अधूरे कागज़ ले
कर जाते है | सामने वाले से और नए आधार मांगे जाते है | मतलब, किसी भी वजह विलम्ब हो; ऐसा कोई एक पक्षकार सोचता है |
साक्षी की अनुपस्थित ,फर्जी
तबीबी प्रमाणपत्र जैसे बहाने बनाकर मुकदमे
को तीतर-बितर करते है |
सभी विद्वान और विधि के जानकार वकील महाशय अपने
ही असील को सच्चा मानकर चलते है | सभी
किस्से में दोनों पक्षकार सच्चे हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता| फिर भी सभी सब अपने को सच्चे साबित करने की होड़ लगाते है |यह
कैसी अजीब बात है|
कहावत है की "आटा और उम्र ख़त्म होंगे, तब न्याय मिल्र्गा |"
जर्मन कहावत भी है – “ Go to
law for Sheep and lose Cow ! “ हकीकत तो यह है की जिसके पास लड़ने की
ताकत होती है ,वही न्याय पा
सकता है | आम आदमी सच्चे होने पर भी कब और कैसा न्याय पायेगा ये कोई नहीं कह सकता | हमारे मानवीय
एवं उदार कायदे के छिंडे { hole } जाँच
कर उसका बुरा फायदा उठाया जाता है|
यह गलत बात है | सब जानते है,मगर कोई इलाज
नहीं | गुजराती भाषा के कवि करसनदास माणेक कहते है ," देवड़िए
दंड पामे चोर मुठ्ठी जार ना ,लाख
खांडी लूटनारा महफिले मंडाय
छे |" ( मुट्ठी अनाज चुराने वाले को दंड होता
है और करोडो रूपये लूटने महफ़िल जमाते है |
)
हम सभी साथ
मिलकर सोचे - आखिर सत्यका विजय होने वाला है | न्यायतंत्र का
फैसला जो भी हो ईश्वर तो
सदा सत्य के साथ ही रहता है |
और
खास करके हम भारतवासी तो अदालत को न्यायदेवी का मंदिर ही तो मानते है |
मन्दिरमे
ईश्वर के सामने जूठे को सच्चा साबित करने
की सोच भी नहीं आनी चाहिए| यहां
बिना वजह बाधा डालने का ,या विलम्ब ने ले जाने का सवाल ही पैदा
नहीं होता | हम मंदिर में है |
भारतीय संस्कृति तो कहती है -- कैसा
होगा राम राज्य ....
न
राज्यं न राजाऽसीन्न दण्डयो न च दाण्डिक: |
धर्मेणैव प्रजास्सर्वा रक्षन्ति स्म परस्परम् || ( जंहा राज्य या तो राजा भी नहीं होगा ,दाण्डीय भी नहीं और दंड देनेवाला भी नहीं |प्रजा परसपर आपसमे मिलकर सबको सुरक्षित करेगी|)
धर्मेणैव प्रजास्सर्वा रक्षन्ति स्म परस्परम् || ( जंहा राज्य या तो राजा भी नहीं होगा ,दाण्डीय भी नहीं और दंड देनेवाला भी नहीं |प्रजा परसपर आपसमे मिलकर सबको सुरक्षित करेगी|)
आखिर तौर पर हम
सब मानवी है | ईश्वर की सबसे
बड़ी प्रिय ,बुद्धिमान ,समझदार ,प्राणवान
और विचारवान रचना है | मानवीयता ,संवेदन शीलता,वाले
,दूसरोके भाव -प्रेम ,दुःख-विषाद समजने वाले है | सच्चे
को जल्द से जल्द न्याय मिले ,न्याय देवी की गरिमा बढे -बरकरार रहे ऐसी प्रार्थना करे |सब को सन्मति दे
-सदभुद्धि दे| जंहा भी हो सके ,सच्चे
को त्वरित न्याय मिले ऐसा प्रत्यक्ष या
परोक्ष योगदान दें | इस विचार को फैलाते रहे| न्यायदेवी को हम सब का शत शत प्रणाम |