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Tuesday, July 31, 2018


                                                 तारीख  पे तारीख ...........दिनेश मांकड़
                    छबीस सल्ल के अनुस्नातक सुनील पर मुकदमा दर्ज हूजा | उसने कुछ गुन्हा नहीं किया ,फिर भी ., पुलिस हिरासत और कैद |   पास में पैस नहीं थे इसलिए जामिन नहीं मिला| अदालत में  मुकदमा सात साल चला  और वह निर्दोष जाहिर हुआ | उसने माननीय न्यायमूर्ति को सवाल किया " मेरे जेल में बीते निरर्थक सात साल कहा से लाउ ?
                    भारतीय न्यायतंत्र उत्तम है |संविधान  और दंड संहिता भी अधिक उत्तम है |  फिर भी  कुछ न कुछ  वजह स विलम्ब में न्याय मिलता है | और कई निर्दोष लोग सालों तक शारीरिक एवं मानसिक यातना भुगतते है| 
               अपने जीवन में हम सभी  बातों में तुरंत ही परिणाम -फल चाहते है | रसोईघर में  अच्छी रसोई बनी ,जल्दी ही मन खाने को जी चाहता है | बच्चो की पढाई के बाद उसके परिणाम की उत्सुकता हमें कितनी होती है?  न्याय तंत्र में भी जो व्यक्ति निर्दोष  होती है ,वह तो तुरंत ही फैसला चाहती है | मगर जो  दोषित है उसको कोई चिंता नहीं ,इसलिए  वह बार बार किसी न किसी बाधा डाल कर विलम्ब करने की कोशिश  करता है ,ताकि जितना हो सके उतना मुकदमा उलझाया जाय  और  न्याय में विलम्ब हो|  हमारे देश में सभी को पूरी तरह तक दी जाती है | अपना हो सके इतना बचाव करे | ऐसी आदर्श व्यवस्था होनी ही चाहिए | मगर इसका दुरुपयोग न्यायतंत्र की गरिमा को ठेस पहुंचता है | William  E. Gladston  कहते है    “Justice delayed is justice denied “  विलम्ब से आम लोगोमे न्याय तंत्र के प्रति आदर कम होता है| 
              पहली बात मुद्दत की |  अदालत में प्रक्रिया सुचारु चले तो फैसला भी जल्दी आ सकता है | ज्यादातर  ( सभी नहीं ) मुकदमे में  पक्षकार बार बार किसी न किसी  कारण, नई मुद्दत मांगता है ,कभी कभी बुरे इरादे से अधूरे कागज़ ले कर जाते है | सामने वाले से और नए आधार मांगे जाते है |  मतलब, किसी भी वजह  विलम्ब हो; ऐसा कोई एक पक्षकार सोचता है | साक्षी की अनुपस्थित ,फर्जी तबीबी प्रमाणपत्र  जैसे बहाने बनाकर मुकदमे को तीतर-बितर करते है |
             सभी विद्वान और विधि के जानकार वकील महाशय अपने ही असील को सच्चा मानकर चलते है |  सभी किस्से में दोनों पक्षकार सच्चे हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता| फिर भी सभी सब अपने को सच्चे  साबित करने की होड़ लगाते है |यह कैसी अजीब बात है|
             कहावत है की "आटा और उम्र ख़त्म होंगे, तब न्याय मिल्र्गा |" जर्मन कहावत भी है –Go to law for Sheep and lose Cow ! हकीकत तो यह है की जिसके पास लड़ने की ताकत  होती है ,वही न्याय पा सकता है | आम आदमी सच्चे होने पर भी कब और कैसा न्याय पायेगा  ये कोई नहीं कह सकता | हमारे मानवीय एवं उदार कायदे के छिंडे  { hole } जाँच कर उसका बुरा फायदा उठाया जाता है|  यह गलत बात है | सब जानते है,मगर कोई इलाज नहीं | गुजराती भाषा के कवि करसनदास माणेक कहते है ," देवड़िए दंड पामे चोर मुठ्ठी  जार ना ,लाख खांडी लूटनारा  महफिले  मंडाय  छे |" ( मुट्ठी अनाज चुराने वाले को दंड होता है और करोडो रूपये  लूटने महफ़िल जमाते है | )
          हम सभी साथ मिलकर सोचे - आखिर सत्यका विजय होने वाला है | न्यायतंत्र का फैसला जो भी हो ईश्वर तो सदा  सत्य के साथ ही रहता है | और खास करके हम भारतवासी तो अदालत को न्यायदेवी का मंदिर ही तो मानते है | मन्दिरमे ईश्वर के सामने जूठे को  सच्चा साबित करने की सोच भी नहीं आनी चाहिए| यहां  बिना वजह बाधा डालने का ,या विलम्ब ने ले जाने का सवाल ही पैदा नहीं होता | हम मंदिर में है |
              भारतीय  संस्कृति तो कहती है --     कैसा होगा राम राज्य ....
                                         न राज्यं न राजाऽसीन्न दण्डयो न च दाण्डिक: |
                                           
धर्मेणैव प्रजास्सर्वा रक्षन्ति स्म परस्परम् ||                                                                                                                          ( जंहा राज्य या तो राजा भी नहीं होगा ,दाण्डीय भी नहीं और दंड देनेवाला भी नहीं |प्रजा परसपर आपसमे मिलकर सबको सुरक्षित करेगी|)
              आखिर तौर पर हम सब मानवी है |  ईश्वर की सबसे बड़ी प्रिय ,बुद्धिमान ,समझदार ,प्राणवान और विचारवान रचना है | मानवीयता ,संवेदन शीलता,वाले ,दूसरोके भाव -प्रेम ,दुःख-विषाद समजने वाले है | सच्चे को जल्द से जल्द न्याय मिले ,न्याय देवी की  गरिमा बढे -बरकरार  रहे ऐसी प्रार्थना करे |सब को सन्मति दे -सदभुद्धि  दे| जंहा भी हो सके ,सच्चे को त्वरित न्याय मिले  ऐसा प्रत्यक्ष या परोक्ष योगदान दें | इस विचार को फैलाते रहे|  न्यायदेवी को हम सब का शत शत प्रणाम |


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