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Tuesday, July 17, 2018

                                  लोकद्रोही                       दिनेश मांकड़
      "धन्नूलाल को मारो धक्का ,हमने ही चुना है |"   देश के सभी नागरिकोके  मुंह से जब यह आवाज़ निकलेगी तब ही हमारा लोकतंत्र बचेगा| जिस देश में लोकतंत्र  मजबूत होता  है , उस देश  का विकास त्वरित और सच्ची  दिशा में होता हैऔर लोकतंत्र  तब तब बचेगा जब ज्यादातर नागरिक जागृत रहेंगे |     
देशको आज़ाद हुए सत्तर साल होने  जा रहे है | विश्वका  बहोत बड़ा लोकतंत्र हमारा देश है | हम ही तो  संसारमे  सबसे बड़ी  विरासत वाले है| दुनिया को  हमें ही रास्ता दिखाना चाहिए | विश्व मान्य शास्त्र और ग्रन्थ हमारे  पास है, बड़े तत्व चिंतक एवं राज नीतिज्ञ का अनुभव भी हमारे पास है| फिर भी हमारे लोकतंत्र को अच्छी तरह नहीं चला पाते ?                             
     ऐसा क्या हो गया देश को ,जिसमे एक भी दिन ऐसा न हो जंहा लोकतंत्र की मजाक न हुई होछोटे से  गाँव से लेकर देश की व्यवस्थामे लोकतंत्र की बुराईके  कारण प्रजा व्यथित है|   चुनाव के समय छोटे से सदस्य से लेकर विधायक की पसंदगी कैसे होती है?क्या लोकप्रिय और  सच्चे दिलसे  जनता की सेवा की इच्छा रखने वाला पसंद किया जाता है ? चुनाव  प्रक्रिया के दौरान कितने सवाल उठते है | चुनाव के बाद सदस्य -विधायक होने के बाद ....? हनारे चुने हुए ,क्या हमारे बिच कितने  होते हैहमारे सवाल- हमारी समस्या सुनते है ? सोचते है ? हल ढूंढते  है
           सच्चा  और प्रामाणिक नागरिक  संसद -विधानसभा के  दृश्य देखकर  कितना व्यथित होता होगा और सोचता होगा की आखिर  हमने  ऐसे को क्यों चुने ?
      थोड़े बहोत  साल से   कुछ और  नई बुराइयां  हमारे   लोकतंत्र को छू गई है सब्जी की बाजार लगती है सदस्य को खरीदा जाता है, ग़ुम किया  जाता है,मजबूर किया जाता है उनमे खुद  सदस्य की भीलीभगत होती ही है | समझ में नहीं आता की ,क्या सोच होगी इन सब में ?
 जिन लोगो ने ,पुरे दिल से उनको चुना, कुर्सी पर बिठाया ,आशा अरमान रखे ,उन लोगो का -बड़े  समुदाय का इतना बड़ा विश्वासघात कैसे हो सकता है ?  
       क्या चुने जाने पर  सदस्य ह्रदयहीन हो जाता  है | उसका  मनुष्य होना ख़तम हो जाता है ? अच्छा आदमी  लोकतंत्रमें हो  टिक सकते है ? किया होगा  देशका ? क्या होगा हमारे लोकतंत्र का ?   कुछ  न खुश सोचना ही पडेगा |क्या हम कुछ करा सकते है
       ताजुब की बात यह है की हमारे ही मत से चुने गए ,हम को तो बड़ेतौर  पर भूल जाते है| खुद की  उलझन  में ही पड़े  रहते है\ यह भी सच है की थोड़े बहोत ही पुरे प्रामाणिक है मगर बहुधा तो केवल और केवल स्वार्थ के लिए ही चुनाव लड़ते है--जीतते है|
     इतना बड़ा लोकतंत्र  फिर भी हम लाचार! क्या करे हम? पहली बात -उम्मीदवार की पसंदगी के समय जागृत रहे |किसी भी पक्ष को अयोग्य  पसंद न करे ,ऐसा शोर मचाये रखे| मुश्किल है,मगर थोड़ी सी आवाज़ तो उठा सकते है| आज के  समय में अखबार,मीडिया और सोशियल मीडिया का भी पूरा सहारा तो ले सकते है| दूसरी बात ,मतदान अवश्य करनेकी | ऐसा देखागाया है जो लोग तंत्रकी  टिपण्णी करते है ,उन लोगोने मतदान नहीं  किया होता है ! ज़रा  गंभीरता से सोचो- ज्यादा उम्मीदवार, कम मतदान में  जितने वाले के मिले हुए मत  कितने प्रतिशत  होंगेकभी कभी २० से २५ प्रतिशत मत लेने वाला १०० प्रतिशत आबादी का नेता कहलाता है | इसका आखिर जिम्मेदार तो है ही है न |    
       "नोटा " भी तो अच्छी बात नहीं है| यह तो अपने आप का  ावमयूलन  हैईश्वर ने इतनी बुद्धि दी राखी है की खड़े हुए उम्मीदवार में कौन सबसे कम बुरा है | नोटा  का मतलब मुझ में निर्णय शक्ति  नहीं हैआओ ,आयाराम -गयाराम का पूरा सामाजिक बहिस्कार करे | पुरे दिल से लोकतंत्र का आदर करे | टिपण्णी से बचकर खुद से हो सके इतना करे-|यह भी तो एक दे शसेवा ही है न अस्तु|                      

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