क्या
मैं भरत पुत्र -भारतीय हूँ ? दिनेश
मांकड़ -९४२७९६०९७९
हाँ ,मैंने
कुछ सुना तो है की हमारे देश का नाम "भारत " भी है | ऐसा भी तो सूना है की हमारे देश की
संस्कृति सारे संसार में सब से पुराणी है | मैंने यह भी सुना है की प्राचीनकाल
में हमारा देश विश्व में सबसे बड़ा ,समृद्धवान
एवं उच्च नैतिकता से भरा हुआ था | महा
बलवान और प्रजाप्रिय राजा ऋषभदेव के तपस्वी और अधिक प्रजाप्रिय पुत्र 'भरत " के
नाम पर से
हमारे देश का नाम "भारत " पुराण काल से ही
रखा गया है | "जंहा डाल डाल पर सोने की चिड़िया करती
थी बसेरा ,यह भारत देश है मेरा |
यह
कहने की ही नहीं मगर सच ही थी |मुझे यह भी मालूम है की मेरे देश में
हर एक आदमी दूसरे के भले के बारे में सोचते थे|
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु
निरामयाः, सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
मा
कश्चिद् दुःख भाग्भवेत्।ऊँ शांतिः शांतिः शां तिः||.
अर्थ - "सभी सुखी होवें, सभी
रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय घटनाओं के साक्षी बनें और किसी को
भी दुःख का भागी न बनना |
सुना तो यह भी है
इस पुण्य पावन भूमि पर बहोत ही अवतार ,संत महापुरुष पैदा हुए थे| लोग
तो ऐसा भी कहते थे के भारत देशमे जन्म मिलना दुर्लभ माना जाता था | " दुर्लभे जन्मे
भारत " | वैदिक ऋचा भी है की "आ नो
भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वत:" हे प्रभु ! हमें सब ओर से कल्याणकारी विचार
प्राप्त हों “
इतनी भव्य और
बढ़िया पूर्वभूमिका जानकर मेरे दिलमे एक बड़ा सवाल खड़ा होता है --क्या मैं "भरत पुत्र भारतीय हूँ ? " शायद
आपके मन में भी यह सवाल खड़ा होगा |
प्यारे देशके सामने कैसी विडम्बनाएँ कड़ी यह देखिए तो सही ---
१. राजकारण में आने वाले
९० प्रतिशत से ज्यादा लोग प्रजाकी
सेवा के लिए नहीं बल्कि स्वार्थ के लिए आते
है | सेवा की होड़ नहीं कुर्सी की होड़ लगती है|
निजी
स्वार्थ के लिए अपना ईमान भी यहां आदमी बेच सकता है | हम बिकते है|--हमारी
बोली लगती है |हमारे बहुधा नेताओ का लक्ष्य यही होता है की
जितने के बाद ज्यादा सेज्यादा प्रजाके
पैसे की लूट चलाये |
२.हमें दूसरो की नहीं ,खुद की ज्यादा
चिंता है| देश में करोड़ों नागरिको के पास ईंधन ,पानी
जैसी सुविधा नहीं है | फिर भी हम तो हम सब अपनी सुविधा मुफ्त
मांगते है | हमें करमुक्ति ,ऋण माफ़ी ,सबसिडी
चाहिए | हम यह नहीं सोचते की आखिर सरकार कहासे यह सब
करेगी ?
३.हमारे यंहा भ्रष्टाचार एक शिष्टाचार
बन गया है | काम छोटा हो या बड़ा 'कटकी ' तो
देनी पड़ती है | कितनी अजीब बात है! जो देश के पास ' तेन त्यक्तेन
भुंजीथा : " -( उसको छोड़कर तू प्राप्त कर ) का वेद
मन्त्र है वो ही देश के लोग किसीका लूटने
में पड़े है!
४.मेरे देश में नियम पालन के बड़े बड़े कायदे है |
हम
सब को उसको तोड़ने की बड़ी आदत है | ट्रैफिक नियम उल्लंघन ,कतार
तोड़ना तो हरारी रोज ब रोज
की आदत है| एक तरफ कायदे का उल्लंघन करना दूसरी और पुलिस
वालोको पैसे से भ्रष्ट करके छूट कर खुलेआम फिरना यह तो आम बात है | चोरी
करके सीनाजोरी तो हमारा मन्त्र बना गया है |
५.हमें कुछ भी मुफ्त में मिले ऐसा हम सोचते है |
हम कितने भी वैसे वाले हो ,अगर मुफ्त में
मिलता है तो हम दौड़ते चले जाते है | कभी कोई सच्चे
गरीब की रोटी छीनने में भी हम खिचकते नहीं है |
६.अच्छी चीजोमे मिलावट करके जल्दी कमा लेना ,ऊँचे
दाम लेकर
हलकी गुणवत्ता वाली चीजे पकड़ा देना तो हमारे बाये हाथ का खेल है |
७.'सेल'और 'डिस्काउंट
' के बोर्ड लगाकर लोगोको मुर्ख बनाकर हम बड़ा व्यापार कर लेते है |
८. राष्ट्र की सपत्ति हमारी संपत्ति है ऐसा हम
आसानी से बोल तो देते है मगर बार बार
आंदोलन के नाम पर हमारी ही संपत्ति को तोड़फोड़ करके नुकसान भी हम ही पहुंचाते है|
आखिर नुकसान तो हमारा ही है ,ऐसा
हम ज्यादा सोचते भी नहीं है |
९.कड़ी महेनत करके श्रेष्ठ धनुर्धर बने
अर्जुन-एकलव्य जैसे अनेक छात्रों हमारे
देश हुए थे लेकिन हम तो कम महेनत ,ज्यादा विकल्प और अगर हो सके तो परीक्षामे
चोरी से पास अधिक संतोष प्राप्त करने में मजा अत है | हम अभ्यासमे
कितने भी निम्न हो किसी भी तरह मेडिकल साखामें प्रवेश लेकर डॉक्टर बन जाते
है!!
१०.हम हमारी अगली विरासत -बच्चो के बारे में
ज्यादा नहीं सोचते |उसके लिए हमारे पास बहोत कम समय होता है|
उसमे
अच्छी आदते डालना -चरित्रवान बनाके के उपाय सोचने का तो वख्त भी नहीं है |हम
तो खाओ पीओ और मौज करो -यही जीवन का मतलब समझते है |
११.समय पालन का तो हमारे जीवन में कोई स्थान ही
नहीं| केवल
मनोरंजन और टाइमपास में २४ घंटे कहाँ बीत जाते है वह मालूम ही नहीं पड़ता |.
१२.हमें हमारी पुराणी संस्कृति पर ज्यादा गर्व
नहीं है| यूँ की विश्व के दूसरे देश तो हमारी संस्कृति की बहोत प्रशंसा करते
है ,मगर हमें तो उसकी ज्यादा कीमत नहीं है |
हमारी
मनीषा तो विश्वगुरु बनने की है मगर इस दिशा की हमारी आँखे खुलती ही नहीं है |
अच्छे ,विचारशील
हर एक भारतीय के मन में बार बार सवाल उठता है की क्या मैं वही भारत देश का नागरिक
हूँ ? जिसके पास भव्य इतिहास है ,महँ
संस्कृति एवं विरासत है? देश के पास बड़ा अमूल युवा धन है ,वैज्ञानिक
एवं आध्यात्मिक महापुरुष भी देश के पास है भी| दूरंदेशी विचार
रखने वाले लोग भी है देश के पास | खास तो सब से बड़ी बात है की हम सब बड़ी
आबादी के रूप में है|दुनिया के दूसरे देशोमे नागरिक को अपने
देश के प्रति आदर है तो मुझे तो होनहि
चाहिए न ! क्युकी मेरा देश तो अन्य देशो से कई और ज्यादा विशाल एवं महान है |
ज़रा सोचो, जितना गर्व हमें हमारी माता पर उतना ही
गर्व हमें मातृभूमि माँ भारत पर होना चाहिए -और है भी | जननी
जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी, I (जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से महान है |
) क्यों हम आज से ही से सोचे की मैं क्या कर सकू? मैं जहां हु वह कर्तव्य प्रमाणिकता से
अच्छे ढंग से निभालु | इसमें देश का भला तो होगा ही साथ में
मेरा खुद का भी अधिक लाभ है न ?
और बड़े गर्व से बोले हां मैं
ही बलवान वीर्यवान भरत का पुत्र भारतीय हु
| भारतमाता की जय |
मेरी भी जय |
बहोत खूब सरजी,वंदन,भारतमाता की जय������
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