प्रयोगविर पूज्य
पांडुरंग शास्त्रीजी दिनेश
मांकड़ { ९४२७९६०९७९ }
हमारा प्यारा
भारत देश ,प्राचीनतम संस्कृति वाला देश है | हमारे
ऋषिओने मनुष्य को पशुजीवन में से मानवजीवन
जीने के लिए शिखाया | " तुज़मे पशुसे अधिक कुछ है | ईश्वर ने तुजमे सोचने की शक्ति दी है | तू
जो चाहे वो बन शकता है| तू चाहे तो नर में से नारायण भी बन
सकता है | " ऐसी समज बार बार देकर ऋषिओने मानव को मानव की जीना सिखाया | जंगली
अवस्थामे रहने वाले हमारे पूर्वजोंके पूर्वजो को घर बनके रहना ,परिवार
बनकर रहना ,शिकार के बदले
अन्न उगाकर अपनी मेहनत का खाना | - सदीओ तक ऋषिवर यह
सब बिना स्वार्थ करते रहे है ,और उन महर्षिओँ की वजह से हम आज जो रहे
है|
ऋषिओने जीवन के
साथ धर्म को जोड़ा | ईश्वर के प्रति कृतज्ञता को जोड़ा |
लेकिन कालक्रम धर्मका रूप बदलता जा रहा है | ईश्वर
केवल हमारी आशाए पूरी करने साधन बन गया है| मंदिर पूजास्थल व्यापार केंद्र
बन गए है | आदमी सम्प्रदायों में विभाजित होता जा
रहा है | प्र
पूज्य पांडुरंग
शास्त्री आठवले-दादाजी ने फिर से ऋषि
संकृतिको जगाया है | हम
एक ही जगतपिता के संतान है| मेरे
सामने बैठे में भी वही भगवान् है जो मुजमे बैठा है| श्रीमद भगवद्गीता को साथ लेकर दादाजी
कहते है की ,"अर्जुन के माध्यम से श्रीकृष्ण ने हमें
कैसे जीना वह गीताजी स्वमुखसे बताया है|" गीताजी के सातसौ श्लोक में से हर एक
श्लोकमें हम सब से अच्छा कैसे जी सकते है
-उसका मार्गदर्शन है|
"सर्वस्व
चाहं हृदिशं निविष्टो | {अ..१५ }
-मैं सब के ह्रदय में बैठा हु | " - इसकी
प्रतीति करने दादजीने 'त्रिकाल संद्या' का
विचार दिया कम से कम भगवान् दिन में तीन बार मेरे साथ है ही | सुबह
में मुझे जागते है -मुझे स्मृति दान देते है| दोपर मेरा खाना
पचाके,मुझे शक्ति दान देते है| रातको
नींद देकर मुझे शान्तिदान देते है | भगवान् हमें यह
सब बिना अपेक्षा ,सब को देते ही है | तो
भगवान् के प्रति मेरी कृतज्ञता मैं कैसे प्रगट करू ? पूजनीय दादजीने
हमें "कृति भक्ति " का अनन्य विचार
दिया | भगवान् ने मुझे हाथ ,पैर,ह्रदय
,विचार शक्ति,वाणी शक्ति - सब कुछ दिया है | क्या
मैं भगवान् का कुछ कार्य करने के लिए कुछ कर सकता हु? मेरे दैवी भाई को मैं भी निस्वार्थ
मिलु ,गले लगाउ,उसे भगवान् की
अच्छी बात बताऊ | उसे भाव -प्रेम दू|
" स्वकर्मणा
तमभ्यर्च्य सिद्धिम विन्दति मानव | {अ .१८} - मानव अपने सभी कार्य -कर्म ' ईश्वरको
समर्पित करके सिद्धि प्राप्त करता है|
दादजीने कहा ,"भक्ति एक सामाजिक शक्ति है " केवल
धुप दिप से या मंदिर में जाकर ही भक्ति होती है ,ऐसा नहीं है |
हम जो भी कार्य करते है यह
ईश्वर का ही कार्य है ,ऐसा समज करे तो वह सच्ची भक्ति ही है | इस
बात को प्रमाण करने के लिए दादजीने प्रयोग दिए है | योगेश्वर कृषि ,मत्स्य
गंधा ,अमृततालायम ,गोरस रत्नकला
मंदिर ,यंत्र मंदिर जैसे प्रयोग देकर दादजीने बताया की
तुम जिस साधन से अपना कार्य करता है ,वह तुम्हारे
पूजाके ही साधन है ,और तुम जो कर रहे हो वह तुम्हारी पूजा
है|
ऋषिओने दिए हुए
त्योहार ,प्रतीकों ,मंदिर ,एकादशी
का दादजीने वैज्ञानिक तौर पर अर्थ समझाया
.विश्वके बड़े अर्थशास्त्रीओ और मनोवैज्ञानिकों- जैसेकि मार्क्स ,फ्रॉयड ने नहीं सुलझाई ऐसी बातो को दादजीने ऋषि विचार
से साबित कर बताया |
सम्प्रदाय विचार
से उठकर हम सब एक ही ईश्वर के संतान है -एक ही परिवार -स्वाध्याय परिवार के सदस्य
है | ऐसी भावना रखने वाले मानव को दादजीने बताया ,"ईश्वर
तो हमें अपनी आवश्यकता एवं लायकात अनुसार
देता ही है| हमें कुछ मांगने
की जरुरत ही नहीं| मुझे क्या देना है वह उसको मालूम है
" मनुष्य ,जो
भगवान् की सब से सर्वश्रेष्ठ कृति है ,तो वो क्यों
मांगे ? दादाजी ने 'अयाचक
व्रत ' का विचार दिया | "लेना
देना बंध,फिर भी आनंद "
वर्तमान समय के ऋषितुल्य
पूज्य पांडुरंग दादा को शत शत प्रणाम|
પૂજ્ય દાદા ને કોટિ કોટિ વંદન ...
ReplyDeleteમહેશ.ચ.અંતાણી અમદાવાદ
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