महाशिवरात्रि की
पौराणिक कथा तो हम सब को मालूम ही है | --हिरणी ने अपने बच्चो को मिलकर वापिस
आने का वचन दिया | उसकी राह देखने तक पूरी रात बिल्वपत्र के पेड़ पर बैठा ,एक एक
बिल्वपत्र तोड़कर गिराता रहा | पेड
के निचे शिवलिंग था| उस पर पूरी रात बिल्वपत्र गिरते रहे| शिवजी प्रसन्न हुए| --भोले
नाथ शिवजी को हम सातत्यपूर्ण याद करते रहेंगे तो शीघ्र हमारा कल्याण होगा| हमारी
भारतीय संस्कृति के सभी पर्व-उत्सव के पीछे हमारे ही विकास के लिए कुछ रहस्य छिपे
हुए है |
'शिव
' शब्द का अर्थ ही 'कल्याण ' है | शिवजी
ज्ञान के देवता है |--"शिवो भूत्वा ,शिवं यजेत |--शिव
का स्मरण करते करते खुद 'शिव' बन जाऊ |
ज्ञान
के देव की आराधना करता रहु तो ज्ञान की
प्राप्ति होगी| मेरे अपने बारे में, अपने कर्तव्य के
बारे में ,ज्ञान प्राप्त होगा | शिवजी उत्तुंग शिखर कैलास पर रहते है
-मेरे विचार भी हर समय उच्च ही रहना चाहिए| शिवजीकी जाता
में गंगा है| -मेरा दिमाग हर समय जल जैसा शीतल ही होगा|
अस्खलित
होगा | शिवजी 'नीलकंठ' है| - मुझे
कहा से भी कटुता मिले तो उसको मै स्वीकार
भी करूँगा ,मगर कंठ में ही रखकर खुद को ज़हरीला नहीं
बनाऊंगा | नाग विषयेंद्रिय का प्रतिक है| शिवजीने इसे
अपने गले में बांध रखा है | मै भी संसार रहते हुए भी अपनी सभी
आसक्ति औ -आदतों पर संयम से रहु | डमरू
,जाग्रति का घोष है| मेरी आसपास जो कुछ हो रहा है उससे मै
सदा अवगत ही रहु| तो स्वयं विष्णु उपस्थित बताती है |और त्रिलोचन शिव
की तीसरी आँख भय एवं प्रेम का प्रतिक है | यदि कोई सज्जन को नुकशान होता है तो
ईश्वर उसे अंजाम देते ही है |यु ही तो तीसरी
आंख प्रेम
की सूचक है | प्रेमभक्तिके
अधिष्ठाता भगवान विष्णु ने शिवजी दी हुई भेट है| हम अगर किसीको भी निस्वार्थ रूप से चाहे तो हम भी हम शिवजी का ही कार्य कर रहे है | नटराज शिव तो सभी कलाओ के भी गुरु है| हर मनुष्यके अंदर कोई कला तो छिपी होती
है|कला को विकसित
करना भी तो शिवजीकी ही उपासना है |
बिल्वपत्र तीन पत्तोका बना हुआ है |
मानव
जीवन की तीन अवस्था -बाल्यावस्था,युवावस्था और वृद्धावस्था.| शिवजी
को जब बिल्वपत्र समर्पित करते है तो उस
समय हमें भावना करनी की मेरी तीनो अवस्था
आपको समर्पित है | मेरे जीवनके
सभी क्षण आपके चरणोमे -आपके गुणों से प्रभावित बने रहे |
आइए ,शिवजी की पूजा
के समय-अभिषेक करते वख्त हम संकल्प करे की
मेरा पूरा जीवन सिर्फ मेरे कल्याण के लिए
ही नहीं ,मगर मेरे परिवार ,पड़ोस
,राष्ट्र एवं विश्व के ही समर्पित हो|
न
जानामि योगं जपं नैव पूजां नतोऽहम सदा सर्वदा शम्भु तुभ्यम् ।
जराजन्म दुःखौघ तातप्यमानं प्रभो
पाहि आपन्नमामीश शम्भो।।
मैं न
तो योग जानता हूँ, न ही जप और न पूजा ही। हे शम्भो मैं तो सदा
सर्वदा आपको ही नमस्कार करता हूँ। हे प्रभो ! बुढ़ापा और जन्म ( मृत्यु ) के दुःख
समूहों से जलते हुए मुझ दुखी की दुखों से रक्षा कीजिये। हे ईश्वर ! हे शम्भो ! मैं
आपको नमस्कार करता हूँ।।
હર હર મહાદેવ...🙏
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