हम क्यों त्योहारों मानते है ?
-हमारी भारतीय संस्कृति,विश्वकी सबसे
प्राचीन है.| सालभर हम भिन्न
भिन्न रूप से त्यौहार मनाते है | .क्या हमने सोचाकी हम क्यों त्यौहार
मानते है ? हमारे ऋषि ओने हर त्यौहारके पीछे निश्चित रूपसे
एक बड़ा सन्देश होता है | अगर इसको जाने तो त्यौहार मनाने का
आनंद और बढ़ जायगा |यूँही तो नूतन वर्ष ,बलि प्रतिप्रदा ,भाईदूज
,मकर संक्रांति ,महा शिवरात्रि ,होली,रामनवमी
श्राद्धपर्व ,नवरात्री ,धनतेरस ,काली
चौदस दीवाली और भी अनेक.| हर
त्यौहार के पीछे स्पष्ट रूपसे कोई न कोई बड़ा सन्देश छिपा ही है | अभी
श्रावण महीना चल रहा है | शिव पूजा होती है | ' शोवो
बटवा शिवम् यजेत |'- शिवजी
के विचार से शिव बनने की कोशिश
करना | शिव ज्ञान के देवता है ,तीसरी आँख वाले शिवजी भी भोलेनाथ
कहलाते है | शिवजीका त्रिशूल रक्षा का प्रतिक है तो डमरू
जगाने का ,नागदेवता सयम और चंद्र शीतलता का द्योतक है | अगर हम हमारे
जीवनमे शिबजीका एक भी गुण लाने की कोशिश
करे तो यह ही हमारी सच्ची पूजा है |
श्रावणमे तो रक्षाबंधन है | 'बहुला
चौथ ' सभी प्राणिमात्र के लिए आदर रखने की सोच है | नागपंचमी भी सभी
सरीसृप के लिए सत्कार रखने का सन्देश है | शीलता सातम का उद्देश्य अग्निदेव की पूजा है | जो
देव ३६५ दिन हमारी सेवा करते है उसी प्रत्यक्ष अग्निदेव को एक दिन विराम दे और
उसको याद करके नमन करे | जन्माष्टमी को कृष्ण जन्म तो मनाते है |
साथसाथ
श्री कृष्ण के वीरता ,विचक्षणता ,तटस्थ न्याय ,निर्व्याज
प्रेम ,'परित्राणाय साधुनाम विनाशय दुष्कृताम ' जैसे गुणों को
जीवन में लाने की कोशिश करें | यही सच्ची जन्माष्टमी है
आओ हम हमारे त्योहारों को बारे में जाने और
सच्चे दिलसे ,सच्ची तरह मनाये और अपने विकास के साथ हमारी
भारतीय संस्कृति को भी उजागर करे |
दिनेश ल.मांकड़ -९४२७९६०९७९
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