सरकारी
विज्ञापन एवं अन्य खर्चमे क्यों कटौती नहीं ?
कोरोना काल
लम्बा चला। अब भी कितना चलेगा ,कोई नहीं कह सकता.| छोटे
से आदमीसे लेकर बड़े की आर्थिक स्थिति बिगड़
गई है | बहोत लोगोने नौकरी खोनी पड़ी है | किसीका वेतन कम
हुआ है तो किसीकी आमदनी कम हुई है | हमारे भारतदेशमे करोडो गरीब और
करोडो मध्यमवर्गीयको जीवनकी आवश्यक वस्तु प्राप्त
करने में दिक्कत पड़ रही है |
इस कपरेकालमें
हर आदमी अपना फ़िज़ूल -अनावश्यक खर्च कम करता है | ताकि अपने
परिवारकी आवश्यकताऐ पूर्ण कर सके|
ऐसे समयमे केंद
एवं राज्य सरकारोकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है | लोगोके
स्वास्थ्य सबंधी खर्चभी बढ़ जाते है | हर सरकार अपने तौर पर कार्य करती है |
इस कठिन
आपत्तकालमें केंद्र और राज्य सरकारोंको यह सोचना ही चाहिए की अपने फ़िज़ूल एवं
अनावश्यक खर्च कम करे |
खास करके अखबारों और चेनल्स
पर सरकारोकीकी ओरसे बहोत ज्यादा विज्ञापन आते है | जो विज्ञापन 'जन
जागृति' के लिए है ,वह ठीक है मगर ज्यादातर विज्ञापन
सरकारके किये हुए कार्यो के गुणगानकी होती है | जब पूरा देश आर्थिक आपत्तिमें से गुजर रहा हो ,तब ऐसा विज्ञापनखर्च आवश्यक है क्या ? इस समय करोडो -अरबो रूपये, करोडो भूखे के मुहमे रोटी डालने के
काम में आ सकते |
आम आदमीको शायद
मालूम भी नहीं की अख़बार एवं चेनलमे विज्ञापनमे कितने रुपयेका खर्च होता है | अखबारके
पुरे एक पन्ने की विज्ञापन लाखो रूपये में होती है | देशमे सेंकडो
अख़बार रोज छपते है | हिसाब
लगा सको तो लगाओ ,हर
महीने केंद्र और राज्य सरकारे कितने अरबो रूपये विज्ञापनके
पीछे खर्च करती है | ऐसा
ही चेनल्स विज्ञापन में है |
किसी भूखे
आदमीके हाथमे एक रुपया भी आता है तो उससे पेट भरके ,अपना एक दिन
निकाल लेता है | तो ऐसे अरबो रूपये अगर बच जाये तो कितने गरोबो,मध्यम वर्गीय के जीवन के कठिन दिनोमे
काम आ सकते है ?
आशा जरूर क्र सकते है की केंद्र और
राज्य सरकारों को यह बात समज आये और अच्छे समझदारी के कदम इस बात में उठाये | कोरोना काल में एक आवश्यक कदम बनेगा |
दिनेश मांकड़ अहमदाबाद
९४२७९६०९७९
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