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Tuesday, December 1, 2020

सरकारी विज्ञापन एवं अन्य खर्चमे क्यों कटौती नहीं ?

 


                              

                                      सरकारी विज्ञापन एवं अन्य खर्चमे क्यों कटौती नहीं ?

            कोरोना काल लम्बा चला। अब भी कितना चलेगा ,कोई नहीं कह सकता.| छोटे से  आदमीसे लेकर बड़े की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई है | बहोत लोगोने नौकरी खोनी पड़ी है | किसीका वेतन कम हुआ है तो किसीकी आमदनी कम हुई है | हमारे भारतदेशमे करोडो गरीब और करोडो  मध्यमवर्गीयको जीवनकी आवश्यक वस्तु  प्राप्त  करने में दिक्कत पड़  रही है |

          इस कपरेकालमें हर आदमी अपना फ़िज़ूल -अनावश्यक खर्च कम करता है | ताकि अपने परिवारकी आवश्यकताऐ  पूर्ण कर सके|

           ऐसे समयमे केंद एवं राज्य सरकारोकी जिम्मेदारी बढ़ जाती है | लोगोके स्वास्थ्य सबंधी खर्चभी बढ़ जाते है | हर सरकार अपने तौर पर कार्य करती है |

           इस कठिन आपत्तकालमें केंद्र और राज्य सरकारोंको यह सोचना ही चाहिए की अपने फ़िज़ूल एवं अनावश्यक खर्च कम करे |

            खास करके अखबारों और चेनल्स पर सरकारोकीकी ओरसे बहोत ज्यादा विज्ञापन आते है | जो विज्ञापन 'जन जागृति' के लिए है ,वह ठीक है मगर ज्यादातर विज्ञापन सरकारके किये हुए कार्यो के गुणगानकी होती है | जब पूरा देश आर्थिक आपत्तिमें से गुजर रहा हो ,तब ऐसा विज्ञापनखर्च आवश्यक है क्या ? इस समय करोडो -अरबो रूपये, करोडो भूखे के मुहमे रोटी डालने के काम में आ सकते |

            आम आदमीको शायद मालूम भी नहीं की अख़बार एवं चेनलमे विज्ञापनमे कितने रुपयेका खर्च होता है |  अखबारके पुरे एक पन्ने की विज्ञापन लाखो रूपये में होती है |  देशमे सेंकडो अख़बार रोज छपते  है |  हिसाब लगा सको तो लगाओ ,हर महीने  केंद्र  और राज्य सरकारे कितने अरबो रूपये विज्ञापनके पीछे खर्च करती है | ऐसा ही चेनल्स विज्ञापन में है |

           किसी भूखे आदमीके हाथमे एक रुपया भी आता है तो उससे पेट भरके ,अपना एक दिन निकाल लेता है | तो ऐसे अरबो रूपये अगर बच जाये तो कितने गरोबो,मध्यम वर्गीय के जीवन के कठिन दिनोमे काम आ सकते है ?

         आशा जरूर क्र सकते है की केंद्र और राज्य सरकारों को यह बात समज आये और अच्छे समझदारी के कदम इस बात में उठाये | कोरोना काल में एक आवश्यक कदम बनेगा |

दिनेश मांकड़ अहमदाबाद

९४२७९६०९७९

     


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