Readers

Friday, October 16, 2020

प्रगट करे गर्भदीपको

 

                   हम नवरात्र  क्यों मनाते है  ?             दिनेश मांकड़       {9427960979}

           या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता  | नमस्तयै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमो ||

            जगतजननी आद्य शक्तिका नवरात्र पर्व हम सब बड़े धूमधामसे मनाते  है |

          वैसे तो हम जानते है की गुजरात में ,अब तो भारत और सारे विश्वमें नवरात्रका त्योंहार बड़े धूमधामसे मनाया जाता है | सामान्य तौर पर हम पारम्परिक वेश परिधान करके आनंद ओर उत्साह से गरवा घूमते है -नाचते है -गाते है | अच्छी बात है.| सारे संसार में हमारा भारत ही ऐसा देश है जो विविध संस्कृति और त्योहारों से पूरा मानव जीवन उल्लास पूर्ण बनता है |

       आखिर हम नवरात्र क्यों मानते है ?  बहोत से लोगोने -खास करके युवा पीढ़ीने कभी सोचा तक भी नहीं की यह नवरात्र क्यों ? प्राचीन भारतका बड़ा उज्जवल इतिहास है पुराण कथा के अनुसार महिष  नामका असुर देव एवं मानवजातको त्रस्त कर रहा था| पुरे तीनो लोकमें संहार कर रहा था | उसे निपटने  कोई अति प्रभावी शक्तिकी आवश्यता थी |  सभी देवोने तपस्या की ,और एक महा प्रभावी शक्ति प्रगट हुई और बड़े आयुधो से नौ दिनों तक इस महिसासुरसे युद्ध किया | उसको हराया | उस जगदम्बा के प्रगटीकरणके उत्सवको हम "नवरात्र "के रूप में मनाते है |

      यह तो पौराणिक बात हुई|  हमारे ऋषिओने सभी त्योंहारोंके पीछे के सच्चे रहस्यको पुरे वैज्ञानिक एवं आध्यात्मिक तौर से समजाये है |   हमारे भीतर कितने असुर -राक्षस बैठे हुए है ,जिसका हमें पता ही नहीं | और पता है भी तो भी हम निकाल नहीं सकते है हमारे अंदर ऐसी आतंरिक ताकत नहीं है  जो ऐसे असुरो को भगा सके |

       *आलस-प्रमाद  कितने भरे हुए है हमारे अंदर| कितने उम्दा और अच्छे विचार-सोच हमारे अंदर आते है|कुछः कर दिखने को मन करता है | जीवन में कुछ पाने को जी बहोत चाहता है |बहोत कुछ करना है मगर आलस प्रमाद हमें रोक देता है|  

      *इर्षा  नामक शत्रु तो हमें बहोत पीछे ले जाता है |किसी से स्पर्धा अच्छी चीज है मगर इर्षा से हम कुछ पते तो नहीं मगर जो है वोही खो बैठते है |

     *लक्ष्य के प्रति दुलक्ष्य - आज मानव जीवन सिर्फ 'खाओ ,पीओ और मौज करो 'वाला ही बनाता जा रहा है | हमारे अंदर के गुण,अच्छी बाते,अपने और समाज के लिए कुछ ज्यादा करने की सोच बहोत काम होती जा रही है |

       *स्वार्थ और भावना शून्यता -दिन-ब-दिन आदमी के अंदर स्वार्थ परायणता और भाव शून्यता बढ़ता जा रहा है| यह बड़ी चिंता और दुःख की घटना है | इससे परिवार -समाज टूटता जा रहा है | परस्पर की संवेदना कम होती जा रही है |

          हकीकत से तो हम खुद ईश्वर के अंश रूप ही है ,मगर  हमारे अंदर बैठे हुए ऐसे  भयानक असुर हमारी जिनकी रह में बाधा डालते है |हमें आगे नहीं बढ़ने नहीं देते,|हमें अच्छे मनुष्य बनने नहीं देते| हम  सब  मानवी होने पर भी "महिष" (भैस -पाड़ा ) जैसा  जीवन व्यतीत करते है |

     हमारे अंदर ही बैठी हुई इसी "महिषासुर  वृति " को -महिषासुर को ध्वस्त करने लिए हम 'नवरात्र 'मनाते है  नौ दिन हम माँ जगदम्बा की आराधना करके उससे ऐसी शक्ति की  प्रार्थना करते है की हमारे अंदर बैठे हुए आसुरी तत्व का नाश हो |

        जगदम्बा के नवदुर्गा रूपका हमें ध्यान -आराधना करके शक्ति पानी है |

        प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी। तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम्।।

       पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च। सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्।।

        नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:। उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना:।।[1]

         नवरात्र में  इस शैलपुत्री आदि देविओका  ध्यान आराधना करने से इसके ही गुण  जैसे कि तप ,शांति,कल्याणभावना ,सूर्य जैसी प्रबलता ,एकाग्रता और  असंभव को संभव करने वाली सिद्धियां प्राप्त होगी | हमारे शरीर के रहे हुए मणिपुर चक्र ,आज्ञा चक्र आदि सभी चक्रों को स्थिरता और प्रबलता प्रदान  होती है |

     हम  पारम्परिक परिवेश पहन कर संस्कृति को याद रखे आनंदोल्लास से नाचे-घूमे यह तो बढ़िया बात है ,साथ साथ यह मत भूले की यह पर्व हमारे में मानवीय गुण का विकास हो |

         नवरात्र में हम "गरबा" में दिप जलाते है | गरबा शब्द  "गर्भ दिप " से आया है | हमारा शरीर एक मंदिर है | इसके गर्भ गृह में जो दिप है वह हमारा चैतन्य है |-दीपक है | हमें उस दीपक को  अच्छी तरह प्रज्वलित रखना है तो ही हमारा शरीर मंदिर सच्चे अर्थमे  मंदिर बनेगा और उसमे  माँ जगदम्बा "शक्ति " बनकर  आएगी | हमारी अंदर  पैर फैलाकर पड़ी हुई  ,आलस,प्रमाद ,इर्षा,स्वार्थ ,भावशून्यता जैसी  आसुरी शक्ति ख़त्म होगी और  माँ आद्यशक्ति को हम कहेंगे की  "आपकी दी हुई शक्ति से अब हम इतने प्रबल है की हम सब  में -मानव मन में कभी भी  ऐसी आसुरी शक्ति का प्रवेश हो न पाएऔर  पुरे विष्वमे  मानव अच्छा मानव बनकर रहे |                                                                   दिनेश मांकड़

                                                                                         ( 9427960979 )

1 comment:

  1. This article makes us understand how to defeat our inner vices n make our life luminous n meaningful by worshipping Goddess Navdurga congratulations to author for such nice article

    ReplyDelete